भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपने अंधेरो से / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
अपने अंधेरो से
इतना मोह है कि
यह भी भूल गये हो शायद
कि रोशनी
अगले मोड़ पर रहती है
रोशनी से
कतरा कर
कब तक
अपने अंधेरों में
लौटते रहोगे ?
अंधेरा
तुम्हारी नियति नहीं
तुम्हारी कायरता
तुम्हारा डर है
तुम्हें
औरों ने नहीं मारा
अपनी दया के
मारे हुए हो तुम
अपने अंदर झांक कर
तो देखो
दो कदम तो चलो
रोशनी
अभी भी
अगले मोड़ पर रहती है