अपने में बात / राम सिंहासन सिंह
आवऽ सब मिलके करी अपने में बात
सायद मन बहल जईतो अउ कट जइतो रात
कबतक हम बोयब बेर आऊ बबूल
गमले में सीचऽब हम गन्धहीन फूल
कुहासा के होयत अब कब तक आयात
आवऽ सब मिलके करी अपने में बात
भीड़ में खो गेलऽ हे अपनापन आज,
सिर पर मंडरायत हे स्वारथ के बाज
दामन पर लग रहलऽ हे मीतवन के घात
आवऽ सब मिलके करी अपने में बात
सबके सब भटक रहलऽ हे मौसम हे प्रतिकूल
अर्थहीन जीवन के आँक रहल हे मूल्य
केकरा हम सौंपी आज यस के सौगत
आवऽ सब मिलके करी अपने में बात
कइसन बहल हवा जे चर्चित हे गुमनाम
जीवन के मूल्य के अब उतर रहल हे दाम
अँधियारा अब दे रहलऽ हे सूरज के मात
आवऽ सब मिलके करी अपने में बात
ढा रहल कहर रोज दर दरदीला साम
कइसन ई समयय आयल संयम भेल बदनाम
बेबसी के घेरा में अब कैद हे सुप्रभात
आवऽ सब मिलके करी अपने में बात