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अपूर्ण यांचा / सियाराम शरण गुप्त

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शुद्ध शांति-जल बरसाओ तुम
उर-क्षेत्र पर हे प्राणेश!
यही प्रार्थना करते रहना
हुआ हमारा था उद्देश्य।

यह परंतु तुमको क्या भाया,
पावक ही पावक बरसाया;
जीवन-धारण कठिन हो गया
जिसके कारण एक निमेष।

सभी झाड़-झंकाड़ जला के,
स्वाद-रूप में उन्हें बना के,
वह दाहक-पावकस्वामिन अब
स्वयं हो गया है नि:शेष।

अब झट हल का संघर्षण कर
इष्ट बीज बो दो हे विभुवर।
सफल काम करना फिर करके
शांति वारि वर्षा सविशेष।