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अफसोस / प्रिया जौहरी
Kavita Kosh से
जीवन का कोई भी रिश्ता हो
जब टूट जाता है
तो अफ़सोस देकर जाता है
पछतावा होता है कि
एक बार बात करनी चाहिए थी
पर बात करने के बाद भी पछतावा ही होता है
दोनों ही सूरत में अफ़सोस साथ नहीं छोड़ता
जब कभी हम अपना दुःख किसी से कहते है
तो कोई उस दुःख को संभाल के नहीं रख पाता
ये दुःख एक न एक दिन वापस लौट आता है
क्यों कि ये आपका का ही है
दुःख दोबारा वापसी मे
कई गुना बढ़ के
और विस्तृत होकर आता है
तब महसूस होता है कि
बेकार में अपनी आत्मा से छल किया
मौन रहना ही बेहतर था और है ।