भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब / अशोक शर्मा
Kavita Kosh से
अब खुद से बात कर के घबरा जाते है हम!
दिल की बात दिल से न कह पाते है हम!!
तन्हाईयों के जंगल में खो कर अक्सर,
अपनी ही परछाई से डर जाते है हम !!
तेरे जैसा कोई नहीं हैं साथी या संगी मेरा,
जिंदगी की राहों में बस कसमसाते है हम !!
या खुदा यह इश्क का कैसा है इम्तिहा,
अकेले में जुदाई की ठोकरें खाते है हम !!
ऐ काश हमें पुकार लो इक बार भी तुम,
तेरी कसम सब छोड़ के चले आते है हम !!
'आशु' ख़ुशी में भी रोने का ही मन करता है,
तेरी याद में इस दिल को तडपाते है हम !!