...अब मेरे जाने का वक़्त है ।
मैं एक देवदारु वृक्ष को जानता हूँ
जो समुद्र पर निकट झुका हुआ है ।
दोपहर के समय
वह थके हुए शरीर को
हमारे जीवन जितनी ही छाया देता है
और शाम को
इसकी नुकीली पत्तियों के बीच से
बहती हुई हवा एक ऐसे
विलक्षण गीत का आरम्भ करती है
मानो वह आत्माओं का हो,
जिन्होंने मृत्यु का अन्त कर दिया हो,
ठीक उसी क्षण जब वे
त्वचा और होंठ बनना शुरू करती हैं ।
’
एक बार मैं पूरी रात
इस वृक्ष के नीचे जागता रहा ।
सुबह के समय मैं नया था,
मानो मुझे अभी-अभी
खोद कर निकाला गया हो ।
यदि कोई केवल इस तरह जी सके,
तो कोई बात नहीं ।