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अभागा फूल / सियाराम शरण गुप्त

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अभागे फूल, मुरझाने लगा तू;
सताया काल से जाने लगा तू।

अभी अच्छी तरह खिल भी न पाया
कि तुझ पर हाय! एसा दुख आया।

नहीं फैला सका सौरभ कभी तू,
अभी से खो चला गौरव सभी तू।

सभी साथी मुदित हैं, देख तेरे,
तुझी को हाय! है दुर्दैव घेरे।

नहीं तेरा अभी सुवसंत आया,
प्रथम ही हाय! उसका अंत आया!

अभी से लग गया आतप सुखाने
कलेवर हाय! तेरा यह सुखाने!

यदपि मध्यान जीवन का निकट है,
तदपि तेरे लिये सन्ध्या प्रकट है!

हुआ क्यों हाय! यह चित दु:ख भोगी,
दयामय! क्या दया इस पर न होगी?