भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अभियान / श्याम किशोर
Kavita Kosh से
मैदान साफ़ है
आगे बढ़ो
उसने आख़िरी तिनका
तोड़ते हुए कहा ।
मैदान कभी साफ़ नहीं होता
अगर वह मैदान है
मैंने उस कोने की ओर
इशारा करते हुए कहा
जहाँ नए सिरे से
घास जमना शुरू हो गई थी
और फिर से
मैदान साफ़ करने में जुट गया ।