भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अभियान के बाद / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
गूँजते रह-रह करुण-स्वर !
रक्त की नदियाँ बहा कर
दिग-दिगन्तों को हिला कर
थम गये निर्मम बवंडर,
आज जन-जन के व्यथित उर !
मुक्त युग-खग के दमित पर !
:
होम वैभव कर, निरन्तर
नृत्य दानव का भयंकर
हो चुका मानव-अवनि पर,
नाश हिंसा से चकित हर !
विश्व में मानों जड़ित डर !