भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अभी तो लौट जा / सुरेन्द्र स्निग्ध

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐ मौत, मेरी दोस्त !
तुमको लौटना होगा
अभी हमारे प्यार के ये फूल
अपने रूप-रंग और गंध से
इस वृन्त पर हैं खिल रहे
ये घाटियों में भर रहे हैं

एक नया जीवन।
एक नया जीवन यहाँ है खिल रहा
रोशनी का एक बड़ा भण्डार है इन

घाटियों को मिल रहा

हमारी ज़िन्दगी से हो रही है

उर्वरा फिर घाटियाँ

ऐ मौत, मेरी दोस्त !
अभी नहीं साथ दूँगा
लौट जा ।