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अभी नहीं / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
अभी नहीं तूफ़ान उठा है !
कुहराम नहीं
काँपी न मही
टूटे न अभी नभ के तारे,
प्रतिद्वन्द्वी स्वर न थके हारे
अभी नहीं जन-जन के मन में
मुक्ति इष्ट का भाव जगा है !
संघर्ष अथक
नव-ज्योति चमक
फूटी न कहीं अंदर-बाहर,
किंचित उमड़ा न हृदय-सागर,
अभी नहीं नव-रवि की किरणें
वसुधा पर तम विजन घना है !
सुनसान डगर
बीहड़ मर्मर
तरुवर सूखे जर्जर लुण्ठित,
संसृति का कण-कण अपमानित,
अभी नहीं सबके जीने का
पीड़ित जग ने मंत्र सुना है !
बदले दुनिया,
गुज़रें सदियाँ
क्रूर दमन की, बर्बरता की,
मानव-मन की दुर्बलता की,
अभी न नव जग में माता ने
नव शिशु का रुदन सुना है !
1949