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अमृत के प्याले हैं / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव
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साथी हैं
ये गीत हमारे
अमृत के प्याले हैं
नई भोर के सूरज बनकर
ये राह दिखाते हैं
और क्वार की मकर चाँदनी
सँग-सँग बतियाते हैं
राहों के
उन महातमस में
ये नये उजाले हैं
देख रहे जो सोच रहे जो
बस वैसा ही कहते
मिथ्याचारी लोगों से ये
हैं दूर-दूर रहते
सच्चाई
के महासिंधु के
ये रत्न निराले हैं
अक्षर-अक्षर मृत्युंजय हैं
जो बूझे सो जाने
जिनने इनकी संगत कर ली
मानुष हुए सयाने
सच कहने की
इनसे बढ़कर
अब कहाँ मिसालें हैं