अमृत पल / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
201
प्रेम का कर्ज़
कभी उतरे नहीं
बढ़ता जाए
202
उम्र हमारी
बढ़े सौगुना फिर
तुम्हें ही लगे ।
203
बीते बरसों
तुम्हे मिल मन में
खिली सरसों ।
204
जीवन भर
निभाने का आनन्द
मेरा स्वर्ग है ।
205
पी लेंगे हम
अमृत समझके
दुख तुम्हारे ।
206
तुम्हारा मन
आँगन -उपवन
फूल -सा खिले ।
207
मेरी दुआ।एँ
सराबोर फ़िजाएँ
करें आँगन
208
पथ में धूल
व आँगन में शूल
कभी न आएँ ।
209
मोह के तार
बाँधे बाहुपाश में
सारा संसार
210
पाती न मिली
लगा -हम भटके
मरुभूमि में।
211
साँझ के साए-
में पीर बन जगी
यादें तुम्हारी ।
212
काँपते हाथों
खोला लिफ़ाफ़ा ,कोरा
कागज़ मिला ।
213
रिश्ते न होते
प्राणहीन शब्द ये
प्राण हमारे ।
214
बाँधूँगा कैसे
रिश्तों में तुम्हें , तुम
इनसे परे ।
215
मीत कहूँ या
जीवन की गीता का
गीत कहूँ मैं ।
216
युग न जाने
कभी प्रेम का अर्थ
करे अनर्थ
217
गीत -बहिना
जीवन का गहना
मेरा कहना ।
218
अमृत- पल
जो आज मिल गए
क्या होगा कल?
219
पल -पखेरू
उड़ गए सब वे
लौट न पाए ।
220(274)
परखना है
पावनता किसी की
पूछो मन से ।