भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अम्बा स्तुति / महेन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
हे अंब जगदंब अवलंब तेरी।
काली महाकाली कंकाली बंगाली
किरीट कुंडल वाली हरो कष्ट मेरो।
तू ही देव देवी तू ही अटल छत्र
आया शरण में दया दृष्टि फेरो।
तजि के सकल आस आयो तेरो पास
ठाढ़े महेन्द्र दास पलकें अघेरो।