भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अयोघ्या : एक / कुबेरदत्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाकर अली
बनाते थे खड़ाऊँ
       अयोध्या में।

खड़ाऊँ
जाती थीं मन्दिरों में
राम जी के
शुक्रगुज़ार थे बाकर अली।

ख़ुश था अल्लाह भी।
उसके बन्दे को
मिल रहा था दाना-पानी
नमाज़ और समाज
        अयोध्या में।

एक दिन
जला दी गई
बाकर मियाँ की दूकान
जल गई खड़ाऊँ —
मन्दिरों तक जाना था जिन्हें
                हे राम !