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अयोध्या / अग्निशेखर
Kavita Kosh से
जीवित हो रहे हैं मुर्दे
अयोध्या का जाप करने वालों की
खुल रही हैं आँखें
चुकाया नहीं जा सकता है
मुर्दों का ऋण
अतीत खुजा रहा है पाँखें
धर्म
सिर पर नहीं
छतों पर चढ़कर अब बोलता है नगर में
प्रतिष्ठित हुई हैं ईंटें
देवताओं की तरह पूजित
मरी हुई ईंटें
इतिहास का वितरित हुआ प्रसाद
हे राम !
तुम कितनी त्रासदियाँ देखोगे