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अरण्य : शरण्य / ज्ञानेन्द्रपति
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जब एक हाँका
हर ओर से मुझे खदेड रहा था
खूंख़्वार राइफ़ल की नाल की सीध में
लाया जा रहा था मुझे जब्रीया
तुमने मुझे पनाह दी थी
अपनी बाहें खोल कर
कहा था : छुप जाओ
छुपने की बहुत भरोसेमंद जगह है यह
स्त्री के मन से अधिक गहराई तो धरती पर
धरती के पास भी नहीं
तब से मैं तुम में भी जगता हूँ