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अर्थों की कनागत / रेखा राजवंशी
Kavita Kosh से
कंगारूओं के देश में
तुम आए
तुम्हारा स्वागत ।
भावों को शब्द मिले
हुए दूर कई गिले ।
सूने मन आँगन के
बिरवे में फूल खिले ।
बादल के आँचल में
मेघों के मन मचले ।
तुम आए तो जैसे
सूरज ने रुख बदले ।
रीता पल बुनने लगा
अर्थों की कनागत ।
कंगारूओं के देश में
तुम्हारा स्वागत ।