असफल व्यक्ति / निकअलाय ज़बअलोत्स्की / वरयाम सिंह
सुनसान राह पर, तंग सी पगडण्डी पर
जहाँ पड़ी रहती है सुनहली रेत
क्यों घूम रहे हो तुम यहाँ, इतने चिन्तित
सारा दिन अवसाद में गहरे डूबे ?
यह रहा बुढ़ापा तेज़ आँखों वाली डायन की तरह
छिपा बैठा है सरई के ढाँचे के पीछे ।
झाड़ के बीच सारा दिन टहलता
ध्यान से देखता रहता है तुम्हें ।
काश, याद करते तुम, किस तरह सफ़र की रातों में
संघर्ष में दमकते तुम्हारे जीवन ने
तुम्हारे कन्धों पर रखे थे
कोमल हाथ और शीतल पंख ।
उस स्नेहिल दृष्टि, क्लान्त और सावधान दृष्टि ने
अपने आलोक से भर दिया था तुम्हारा हृदय,
लेकिन तुमने गहराई और विवेक से सोचा
और वापिस चले आए अपनी पुरानी लीक पर ।
जीवन की राह पर सावधानी से चलने के
अच्छी तरह याद थे तुम्हें पुराने नियम ।
सावधान और सहमा-सहमा तुम्हारा विवेक
इस सुनसान राह पर दिशा दिखाता रहा तुम्हारे जीवन को ।
रास्ता चला गया आगे कहीं एकान्त में
उधर कहीं, गाँव की पृष्ठभूमि में
पूछा नहीं उसने तुम्हारा या तुम्हारे पिता का नाम
न ही ले गया वह तुम्हें सोने के महलों के भीतर ।
अपनी विलक्षण बुद्धि का प्रयोग किया तुमने
किन्हीं व्यर्थ और अर्थहीन कार्यों में ।
चमकता था जो हीरे की तरह कभी
निष्प्रभ पड़ गई अब उसकी छवि ।
और अब चले आओ, हिसाब करते रहो,
छिपाते रहो अपने विक्षिप्त विचार,
देखो सरई की छाया के नीचे किस तरह
मुस्कुरा रहा है तुम्हारा अपना ही बुढ़ापा ।
खुले रास्ते से नहीं, तुम चलते रहे तंग लीक पर
ढूँढ़ नहीं पाए तुम अपनी राह,
जीवनभर तुम अतिरिक्त सावधान रहे, रहे चिन्तित अधिक ही
मालूम नहीं पड़ा तुम्हें कभी — यह सब कुछ आख़िर किसलिए !
1953
मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
НИКОЛАЙ ЗАБОЛОЦКИЙ
Неудачник
По дороге, пустынной обочиной,
Где лежат золотые пески,
Что ты бродишь такой озабоченный,
Умирая весь день от тоски?
Вон и старость, как ведьма глазастая,
Притаилась за ветхой ветлой.
Целый день по кустарникам шастая,
Наблюдает она за тобой.
Ты бы вспомнил, как в ночи походные
Жизнь твоя, загораясь в борьбе,
Руки девичьи, крылья холодные,
Положила на плечи тебе.
Милый взор, истомленно-внимательный,
Залил светом всю душу твою,
Но подумал ты трезво и тщательно
И вернулся в свою колею.
Крепко помнил ты старое правило —
Осторожно по жизни идти.
Осторожная мудрость направила
Жизнь твою по глухому пути.
Пролетела она в одиночестве
Где-то здесь, на задворках села,
Не спросила об имени-отчестве,
В золотые дворцы не ввела.
Поистратил ты разум недюжинный
Для каких-то бессмысленных дел.
Образ той, что сияла жемчужиной,
Потускнел, побледнел, отлетел.
Вот теперь и ходи и рассчитывай,
Сумасшедшие мысли тая,
Да смотри, как под тенью ракитовой
Усмехается старость твоя.
Не дорогой ты шел, а обочиной,
Не нашел ты пути своего,
Осторожный, всю жизнь озабоченный,
Неизвестно, во имя чего!
1953 г.