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असमंजस में रह-रह के / श्याम कश्यप बेचैन
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असमंजस में रह-रह के
हार गये हम सह-सह के
सब है शहर में पर घर की
याद आती है रह-रह के
मेरा कोई उस्ताद नहीं
सीख रहा हूँ कह-कह के
क्यों ना परचम-सा फहरूँ
तेज़ हवा में बह-बह के
मुँह से यह क्या निकल गया
सोच रहा हूँ कह-कह के