भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
असमर्पितों का गीत / बालस्वरूप राही
Kavita Kosh से
दुःखों का तो कहना ही क्या
सुख भी हमें उदास लगे।
जन्म हमारा हुआ इसलिए
वीराने आबाद करें
राजभवन को ठोकर मारें फुटपाथों को याद करें।
भाग रही हैं जाने क्यों
यह भीड़ आइनों के पीछे
शीशमहल में काटे जो दिन, हम को तो बनवास लगे।
यह धूमिल कोहरा अगरु है
धूल हमारा चंदन है
आत्मगर्व के लिए क्रॉस पर चढ़ जाना अभिनंदन है।
जिन की यशगाथा अक्सर
दुहराई है इतिहासों ने
वे इतिहास पुरुष हमको तो मानव का उपहास लगे।
जिस युग में विज्ञापन
और सुयश में तनिक न अंतर है
उस युग में सम्मानित होना सबसे बड़ा अनादर है।
यों तो हर प्याला मदिरा
या मधु से भर ही जाता है
अमृत किन्तु मिलता उसको ही जिसे अमृत की प्यास लगे।
दुःखों का तो कहना ही क्या
सुख भी हमें उदास लगे।