भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अस्तित्व / शशि पाधा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ नहीं हुआ--
... उसके जन्म पर
न ढोल, न बधाई
न भेंट, न आरती
न पूज , न रीत

कोई नहीं आया--
उसके आने पर
न दादी, न नानी
न मौसी, न मामी
भेज दी थी
एक अनमनी आशीष
एक ठंडी सांस, सब ने
क्योंकि--
वह थी अवाँछित, उपेक्षित
अपनी माँ की तीसरी बेटी

किन्तु वह----
है, वह थी , वह रहेगी
लड़ेगी हर आग से,
छल से, प्रताड़ना से
झूठे अनुबंधों से,
अनुचित प्रतिबंधों से
ढूँढ़ेगी वह---
अपना क्षितिज
अपना सूर्य, अपनी दिशाएँ
जियेगी वह---
हर युग में, हर काल में
हर परिस्थिति में, हर समाज में

यह लड़ाई केवल उसकी है!!!!