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अस्पष्ट / शशि सहगल
Kavita Kosh से
मुझसे भाषण सुनने को कहा गया है
सुन रही हूँ मैं
बड़े ध्यान से सुनती हूँ
करती हूँ, कोशिश समझने की
जाने क्यों, अपनी ही भाषा
समझ नहीं आ रही मुझे
साफ और स्पष्ट है वह शोर
जो उभर रहा है
कमरे से बाहर
क्योंकि
उसकी कोई वजह तो है!