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अहम / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित
Kavita Kosh से
अहम की लड़ाई मे
भिड़ते हम
कितने भारतीय हैं
कितने संत सरीखे
शायद
दो प्रतिशत भी नहीं
देश की फिक्र नहीं
पर
फिक्र है बैंक बैलेंस की
अहम शब्द
शायद दीमक से बड़ा है
जो सदियों से
डंस रहा है
सदियों तक डंसेगा
और आदमी की
गैरत बुरादे-सी
झर जाएगी
एक दिन
इस फर्श पर
जो चिकना है