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आँखें / भारत यायावर
Kavita Kosh से
मेरी आँखें आकाश हैं
मेरे लिए
और लोगों के चेहरे
रूप
रंग
आँखों के बिना
हर आईना
डूबा के अन्धेरे के सैलाब में
आँखें
अन्धेरे को चीरती हुईं
देख पाने में हैं सक्षम
दूर की टिमटिमाती हुई लौ
काँपता हुआ
रक्तकमल एक
सूरज के हाथ का
आँखें
दरख़्तों की पत्तियाँ हैं
हवा के झोकों में
उड़ती हुई पतंगें
रात में
तालाब के बीच
डूबा चांद
आँखें मेरी कविता की माँ हैं
मैंने इन्हीं से लिया है
हर बार जन्म