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आँख मलते हुए जागती है सुबह / विजय वाते

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आँख मलते हुए जागती है सुबह|
और फिर रात दिन भागती है सुबह|

सूर्य के ताप को जेब में डालकर,
सात घोडों का रथ हाँकती है सुबह|

बाघ की बतकही, जुगुनुओं की चमक,
मर्म इनका कहाँ, आँकती है सुबह|

आतें शाम की, रात की दस्तकें,
गुड़मुडी दोपहर लांघती है सुबह|

रात सपनों के डर से वो सोई नहीं,
सारे सपनों का सच जानती है सुबह|