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आँख में सपने नहीं हैं / विजय वाते

आँख में सपने नहीं हैं।
किंतु हम टूटे नहीं हैं।

आह भीतर जल रही है,
हम कभी मरते नहीं हैं।

तुम भी तो भोले नहीं हो,
हम भी यूँ बच्चे नहीं हैं।

तुम बिना शक बेवफा हो,
हम अगर अपने नहीं हैं।

भूल जाएँगें तुझे हम,
इतने भी अछ्छे नहीं हैं।