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आँख से आँख मिलाता है कोई / शकील बँदायूनी
Kavita Kosh से
आँख से आँख मिलाता है कोई
दिल को खीँचे लिये जाता है कोई
वा-ए-हैरत के भरी महफ़िल में
मुझ को तन्हा नज़र आता है कोई
चाहिये ख़ुद पे यक़ीन-ए-कामिल
हौसला किस का बढ़ाता है कोई
सब करिश्मात-ए-तसव्वुर है "शकील"
वरना आता है न जाता है कोई