आँगन मैं हरि सोइ गए री / सूरदास
आँगन मैं हरि सोइ गए री ।
दोउ जननी मिलि कै हरुऐं करि सेज सहित तब भवन लए री ॥
नैकु नहीं घर मैं बैठत हैं, खेलहि के अब रंग रए री ।
इहिं बिधि स्याम कबहुँ नहिं सोए बहुत नींद के बसहिं भए री ॥
कहति रोहिनी सोवन देहु न, खेलत दौरत हारि गए री ।
सूरदास प्रभु कौ मुख निरखत हरखत जिय नित नेह नए री ॥
भावार्थ :--`सखी ! श्याम आँगन में ही सो गये । दोनों माताओं (श्रीरोहिणी जी और यशोदा जी) ने मिलकर धीरे से (सँभालकर) पलंग सहित उठाकर उन्हें घर के भीतर कर लिया।' (माता कहने लगीं -)`अब मोहन तनिक भी घर में नहीं बैठते; खेलने के ही रंग में रँगे रहते (खेलने की ही धुन में रहते) हैं । श्यामसुन्दर इस प्रकार कभी नहीं सोये । (आज तो) सखी! निद्रा के बहुत अधिक वश में हो गये (बड़ी गाढ़ी नींद में सो गये ) (यह सुन के) माता रोहिणी कहने लगीं -`खेलने में दौड़ते-दौड़ते थक गये हैं, अब इन्हें सोने दो न ।' सूरदास जी कहते हैं कि मेरे स्वामी के मुख का दर्शन करने से प्राण हर्षित होते हैं और नित्य नवीन अनुराग होता रहता है ।