आँधी तूफान के बाद जैसा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
आँधी तूफान के बाद जैसे
आकाश का वक्ष स्थल करता अवारित है
उदया चल का ज्योतिः पथ
गभीर निस्तब्ध नीलिमा में,
वैसे ही मुक्त हो
जीवन मेरा
अतीत के वाष्प जाल से,
सद्य नव जागरण
कर उठे त्वरा शंख ध्वनि
इस जन्म के नव जन्म द्वार पर।
कर रहा प्रतीक्षा में-
पुँछ जाये रंग का प्रलेप यह उज्जवल प्रकाश से,
मिट जाय खेल व्यर्थ का
खिलौना बना अपने को,
निरासक्त मेरा प्रेम अपने ही दाक्षिण्य से
पा जाय निज मूल्य शेष।
आयु के स्रोत में बहता चला जाऊं जब
अँधेरे उजाले मंे
तट तट पर देखता फिरूं न मैं
मुड़-मुड़कर अपनी अतीत कीर्ति को;
अपने सुख दुख में
निरन्तर जो लिप्त ‘मैं’
अपने से बाहर ही कर सकूं उसकी स्थापना
संसार की असंख्य बहती हुई घटना की सम श्रेणी में,
निःशंक निस्पृह द्रष्ट की दृष्टि से दुखूं उसे
अनात्मीय निर्वासन के रूप में।
यही मेरी शेष वाणी,
कर देगी सम्पूर्ण मेरे परिचय को असीम शान्त शुभ्रता।
‘उदयन’
प्रभात: 3 दिसम्बर