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आंधी !/ कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
दिन‘र रात
चाल्यो रेळो
कर दी धरती नै
पाछी कुंआरी
बुरीजग्या ऊमरा
भिसळग्या खेत
भाजता फिरै
धोरा‘र पडाळां
चढ़गी खंख
हुगी गुदमैली
सूरज री आंख
खिंडगी खेह
बरसै रेत रो मेह
रूजग्या रसतां रा कंठ
बंधगी ओकळयां
उड़ग्या आळा
घालै बा‘र
कमेड्यां‘र चिड़कल्यां
धूजै थर थर
बांठ‘र बोजा
झिकोळीज्या कोजा
पकड़ लिया पग
बड़‘र पींपळ
पसरग्या आडा
गळयो गरब
पड़गी माथै में धूड़
खूटगी पुन्याई
पण थमतां ही
पून रो वेग
उमटी कळायण
टुहुक्या मोर
बोली टींटोड्यां
जागग्या धरती रै
तम्बूरै रा सातूं सुर
बिसरगी दुुख बणराय
मुंडागै आई साच
सिरजण री जामण
असराळ पीड़ !