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आईने ने सही कहा है / रामानुज त्रिपाठी
Kavita Kosh से
हर प्रतिबिम्ब हो गया वंचक
आईने ने सही कहा है।
यही चाहते थे अरसे से
सपनों का था यही इरादा
दस्तक दे-देकर पलकों पर
नयनों को भरमाएं ज्यादा।
रीत गया शोणित जब तन का
नस-नस में तेजाब बहा है।
वहम ढो रही इच्छाओं का
पूर्ण न होगा कभी कथानक,
इर्द-गिर्द मुट्ठियां तानकर
आ विश्वास बो गये अचानक।
खण्डहर-खण्डहर शेष खड़़े हैं
खुशियों का हर महल ढहा है।
जुड़े न स्नेहिल संवादों से
वह भावुकता नहीं भली है,
ठगे-ठगे से संवेदन के -
बीच जिन्दगी बहुत पली है।
नहीं जगह अब तन में सुख की
मन ने इतना दुःख सहा है।