भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आईने सिर्फ़ सच ही नहीं बताते / रश्मि भारद्वाज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आईने में झाँकती बेचैन आँखें
खोजती हैं अपनी पहचान,
अतीत के रौंदे हुए सपने
उलझे हुए आज़ की लकीरें
और डरावने कल को परे हटा
खोज लाते हैं हम हर बार
एक अज़नबी चेहरा

आईने सिर्फ़ सच ही नहीं बताते
रखते हैं हिसाब
एक पूरी उम्र का
सिखाते हैं सुकून से ताउम्र
ख़ुद से भाग सकने का हुनर