भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आई है दीवाली / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
चारों ओर दिखाई देती कैसी छटा निराली।
आई है दीवाली फिर से आई है दीवाली।
आज हो रहा है घर-घर में,
गणपति-लक्ष्मी पूजन।
खील-खिलौने और मिठाई,
देख-देख हर्षित मन।
अंशू-रिक्की सभी नाचते बजा-बजा कर ताली।
आई है दीवाली फिर से आई है दीवाली।
जगमग है सारा घर-आँगन,
जगमग आज नगर है।
तारों जैसे लगते दीपक,
धरती पर अंबर है।
पूरनमासी जैसी लगती रात अमावस वाली।
आई है दीवाली फिर से आई है दीवाली।
छूट रहे चरखी-अनार-बम,
छूट रही फुलझड़ियाँ।
कितनी मोहक कितनी प्यारी,
लगती हैं ये घड़ियाँ।
हे प्रभु, सब के जीवन में हो-ऐसे ही खुशहाली।
आई है दीवाली फिर से आई है दीवाली।