20
मैं एकाकी कब रहा,जब तुम मेरे साथ।
छोडूँगा तुमको नहीं,यह जन्मों का साथ।
21
हर धड़कन में मैं बसा, जैसे तन में साँस।
आएँगे तूफ़ान भी ,फिर भी तेरे साथ॥
22
किसी डोर से कब बँधा,मेरा यह संसार।
तरसे होंगे हम कभी,बाँधे तेरा प्यार।।
23
मुझमें तो कुछ था नहीं,तुझमें था यह खास।
मुझको देखा तक नहीं,फिर भी यह विश्वास!!
24
देह -धर्म से भी परे,हम दोनों की प्यास।
सुख- दुख साझे हो गए,बच गई जीवन-आस।।
25
लोहे का व्यापार हो, या कोयले की खान ।
समझे वह कब भला,तुम हीरे की खान ॥
26
तेरा माथा चाँद-सा,चूम लिया जिस बार।
मन की पीड़ा छँट गई बरसी फिर बौछार ॥
27
मन में तुम हो शारदा , तन में तुम उल्लास ।
उसे न कुछ भी चाहिए, तुम जिस मन के पास ॥
28
तुझको जितने दुख मिलें, मुझको देना दान ।
मेरी बस यह कामना,दूँ तुझको मुस्कान ॥
29
करूँ आचमन हर घड़ी, गिरे नयन से नीर ।
मेरा सुख केवल यही, हर लूँ तेरी पीर ॥
30
दानव जिसके मन बसे, वह बाँटेगा शूल ।
हम-तुम तो उपवन रहे, केवल बाँटें फूल ॥
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