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आए गयो, मोरे मन भाए गयो / शैलेन्द्र

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आए गयो, मोरे मन भाए गयो
दिल में समाए गयो राम, बलम मोरा
जिया उलझाए गयो रे
आए गयो, मोरे मन भाए गयो …

रातों की नींद गई, दिन का चैन गया
कहीं भी जी न लगे, लगा एक रोग नया
चाँदनी रात जले मोरी चँदा के बिना
आके मिल जा रे सजन, और तारे न गिना
फागुन आए गयो रे
आए गयो, मोरे मन भाए गयो …

रात-दिन उनके हमें सपने आने लगे
मीठी-मीठी-सी अगन दिल में सुलगाने लगे
हम अकेले में नया गीत जब गाने लगे
बात जब बढ़ने लगी, लोग समझाने लगे
कौन भरमाए गयो रे
आए गयो, मोरे मन भाए गयो …

हर घड़ी जाने लगी चाँद-तारों पे नज़र
भूलने हम भी लगे जानी-पहचानी डगर
अपनी दुनिया है नई, किसको दुनिया की ख़बर
दिन-ब-दिन बढ़ता गया, दिल पे चाहत का असर
पपीह गाए गयो रे
आए गयो, मोरे मन भाए गयो …

(फ़िल्म - बेग़ाना 1963)