आए दिन घोटाला होता
गोरा मुखड़ा काला होता
निज पूँजी के चक्कर में ही
कैसा गड़बड़ झाला होता
असुरक्षित जीवन के नाते
धन धरती पर ताला होता
होता ग़र सब कुछ सामूही
हर हाथों में हाला होता
आए दिन घोटाला होता
गोरा मुखड़ा काला होता
निज पूँजी के चक्कर में ही
कैसा गड़बड़ झाला होता
असुरक्षित जीवन के नाते
धन धरती पर ताला होता
होता ग़र सब कुछ सामूही
हर हाथों में हाला होता