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आकाश से पूछे / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
सूना आकाश
चीरते हुए उड़ता चला गया
पाखी
चिह्न तक बाक़ी नहीं कोई
कोई यह ज़रा
आकाश से पूछे-
उस पर क्या गुज़रती है
पाखी के उड़ जाने
अपने सूनेपन के
चिर जाने से