और सब अस्थिर
मगर आकाश सुस्थिर है ।
अचिर सब है,
शून्य का, पर, भाव यह चिर है ।
नभ असीम, अपार का
वैभव अदृष्ट, अमाप;
मनुज है ऊँचा बहुत,
पर यहाँ नतशिर है ।
और सब अस्थिर
मगर आकाश सुस्थिर है ।
अचिर सब है,
शून्य का, पर, भाव यह चिर है ।
नभ असीम, अपार का
वैभव अदृष्ट, अमाप;
मनुज है ऊँचा बहुत,
पर यहाँ नतशिर है ।