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आख़िर कब तक बची रहेगी पृथ्वी / अच्युतानंद मिश्र

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वे बचाएँगे पृथ्वी को
जी-२० के सम्मलेन में
चिंतित उनकी आँखें
उनकी आँखों में डूबती पृथ्वी

नष्ट हो रहा है पृथ्वी का पर्यावरण
पिघल रही है बर्फ़
और डूब रही है पृथ्वी
वे चिंतित हैं पृथ्वी कि बाबत
जी-२० के सम्मलेन में
 
पृथ्वी का यह बढ़ता तापमान
रात का यह समय
और न्योन लाइट की
रौशनी में जगमगाता हॉल
हॉल में दमकते उनके चेहरे
और उनके चेहरे से टपकती चिंताएँ
और चिंताओं में डूबती पृथ्वी !

क्या पृथ्वी का डूबना बच रहा है
जी-२० के इस सम्मलेन में ?
कौन सी पृथ्वी बचायेंगे वो
वो जो ग्लोब सरीखी रखी है
जी-२० के इस सम्मलेन में !
क्या प्लास्टिक की वह पृथ्वी
डूब जाएगी ?

डूबते किसान को कुछ भी नहीं पता
डूबती पृथ्वी के बारे में
जी-२० के सम्मलेन को वह नहीं जानता
उसे पता है हल के फाल और मूठ का
जो धरती की छाती तक जाती है
जहाँ वह बीज बोता है
और महीनों, वर्षों, सदियों
सींचता है अपने पसीने से
ताकि बची रहे पृथ्वी

बाँध टूट गया है
किसी भी वक़्त डूब सकता है गाँव
लहलहाती फसल डूब जाएगी
डूबता किसान डूबती धरती के बारे में सोचता है
जी-२० की तरह नहीं
किसान की तरह
अपने निर्जन अँधकार में

यह बारह का वक़्त है
जी-२० का सम्मलेन ख़त्म हो रहा है
सुबह अख़बारों में छपेंगी उनकी चिंताएँ
वे एक दूसरे का अभिवादन करते हैं
और रात के स्वर्णिम होने की शुभकामनाएँ देते हैं

नदी के शोर के बीच
टूटता है बाँध
किसान के सब्र का
उसकी आँखों के आगे नाचते हैं
उसके भूखे बिलखते बच्चे
दिखती है देनदार की वासनामयी आँखें
उसकी बीबी को घूरते

एक झटके से खोलता है
वह डी०डी०टी० का ढक्कन !

सुबह के अख़बार पटे पड़ें है
सफल जी-२० के सम्मलेन की ख़बरों से
डूबते गाँव में कोलाहल है
किसान की लाश जलाई नहीं जा सकेगी
वह उन फ़सलों के साथ
बह जाएगी जी-२० के सम्मलेन के पार
समुद्र में !

आख़िर कब तक
बची रहेगी पृथ्वी ?