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आखिर अन्हार कबले / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
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आखिर अन्हार कबले
उनके सुतार कबले
पाइब गुलाब कबहूँ
गाड़िहें ई खार कबले
उल्टा बही, बता द ऽ
पानी के धार कबले
हिम्मत के बा भरोसा
चल पाई रार कबले
खूबी के खामियन अस
होई प्रचार कबले
पलटी ‘पराग’ मौसम
पतझड़ के मार कबले