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आगूंच / कन्हैया लाल सेठिया

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तू बणायो घर
पण इण में रैसी
थारै सागै
बिसारा, कंसला’र माछर
बैठसी छाजां परां कबमतर
घालासी आळो चिड़कल्यां
लटकसी गुंभािियां में चमचेड़ा
हंगसी छात पर कागला
करसी जापो मिनकड़यां
आसी कणाई ऊंदरां रै लारै
भाजतो सरप,
कोन कर सकै तू
आं धिंगाणिया पर
कचेड़ी में मामलो
तू ल्या सकै गवाह
पण कोनी कढ़ा सकै
आं पर वांरट
लै राखी है पैली स्यूं
आं सगलां री
आंगूच जामनी
कुदरत !