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आग / तुलसी रमण
Kavita Kosh से
धीमे-धीमे सुलगती भीतर
राख ढकी
उपलों की आग
भुरभुरा जाती
सारी देह
आत्मा नि:शब्द
चटख़ती रहती
सितंबर 1990