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आग का खेल खेलो / अम्बिका दत्त
Kavita Kosh से
हवा जब बजाती फिरे
खतरे की सीटियाँ
आसमान जब देने लगे
अविश्वास का धुआँ
माहौल जब भर जाए
कचरे और सीलन से
तब/बिलकुल भी मत डरो
उमंगहीन नसीहतों से
आग का खेल खेलो।
अपने आप से बेखबर/उदास
कोने में पड़े हों आतिशदान
सड़कें करती फिर रही हों
सरेआम/सन्नाटे का ऐलान
दहशत के खिलाफ/तब
राग का खेल खेलो
बिलकुल भी मत डरो
उमंगहीन नसीहतों से
आग का खेल खेलों।
तुम्हारा रंग ज्यादा ताजा है
ताजा फूलों के रंग से भी
तुम ज्यादा गंधमय हो
धरती की गंध से भी
टहनी से टूट कर गिर रहे
पत्तों के प्राण का संगीत सुनो
सोओं नहीं, सोओं नही
जाग का खेल खेलो
बिलकुल भी मत डरो
उमंगहीन नसीहतों से
आग का खेल खेलो।