भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आग लगैबउ पानी में / सतीश मिश्रा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मितवा रे! अब लोर पोंछ ले
मत रो भरल जवानी में!
कर भरोसा हमरा पर, हम
आग लगैबउ पानी में।

जइसन फूल झरल माला से,
उड़ गेल दाग लगा डोरा में
ओकरो से धम-धम धमकउआ
फूल फुलैबउ हम कोरा में।

पत्थर पर दुभ्भी जनमैबउ,
दूहम दही बथानी में।
कर भरोसा हमरा पर, हम
आग लगैबउ पानी में।

एक आँख में सूरुज भर के,
एक आँख में चान सजा के,
आसमान के चलत बराती
सभे तरेगन झांझ बजा के।

अबटन से दपदप धरती के
टहकत सेनुर चानी में।
कर भरोसा हमरा पर, हम
आग लगैबउ पानी में।

रुहचुह मखमल अइसन माटी
अन-धन, सोना, हीरा उगलित
उग-उग के पनसोखा सबके
बाधा, बिपदा, पीरा निगलत

फहरत सोहरत अमन-पताक
गाँव, नगर, रजधानी में।
कर भरोसा हमरा पर, हम
आग लगैबउ पानी में।