भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज अकेला हूँ गाने दो / श्यामनन्दन किशोर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज अकेला हूँ, गाने दो।

मुझसे दूर कली सुकुमारी!
मुझसे दूर शूल की क्यारी।

सुख-दुख दोनों से उठ ऊपर
मुझको शान्ति तनिक पाने दो!
आज अकेला हूँ, गाने दो!

बुरे अगर छूटें, तो छूटें।
भले अगर रूठें, तो रूठें।

इस जीवन के सूनेपन को
स्वर-सिहरन से भर जाने दो!
आज अकेला हूँ, गाने दो!

प्याला से पीड़ा जाती है।
तारों पर मीरा गाती है।

मुझे न रोको, मुझे न टोको
आज स्वयं को बिसराने दो!
आज अकेला हूँ, गाने दो!

(2.1.55)