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आज के इस दौर में / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
आज के इस दौर में
सभ्यता की दौड़ में
ग़ौर से देखें अगर
तहज़ीब की भाषा में तो
कपड़े पहन करके भी
हम नंगे खड़े
धीरे-धीरे गंदगी आयी मगर
पूरा इलाका ले गयी
इज़्जत के साथ
यह हमारे गाँव का तालाब है
नाम केवल बचा है
बाबा का सगरा
पानी नहीं दिखता
तलपटनी सिर उठाये
भरोसे का कुँआ सूखा
दो पीढ़ियों के फासले
सदियों के लगते
बाप अपने
आधुनिक बेटे के आगे
रह के चुप
अपनी समझदारी दिखाता है
जैसे बूढ़ा पेड़ पीपल का
गाँव के बाहर
तन्हा खड़ा तपता
पर्यावरण शुद्ध रखता
पर,इस व्यवस्था में वह
एक लोटा जल नहीं पाता
एक पूरी जिन्दगी
आवरण में
झीना-झीना रेशमी
पर्दा टँगा
अन्दर-अन्दर चाटते दीमक
बाहर-बाहर चल रहा पालिश