भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज रो घर / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
आंगण
उफतियोड़ो
कमरा
अमूजियोड़ा ,
साळ-बरसाळी
राड़ सुळगायोड़ी
बैठक
मूंढो सूजायोड़ी
रसोई
सुळगती,
पइन्डो
भभका मारतो
मिन्दर
चिल्लाड़ा मारतो
मेड़ी
माथो पीटती,
भींतां
भौ खायोड़ी
बांडा-बार्यां
डरपीजियोड़ी
आळा-अलमार्यां
लुळता
जाळी झरोखा
झूरता,
नाळा-परनाळा
तिस्सा
छतां
आसूं टपकावती,
छत्ता-दुछता
मुंढ़ा सियोड़ा
भंवरा तहखाना
आंसू पियोड़ा,
धोरीमोड़ो
बन्द
डागळो
माथो झुकायोड़ो,
अरतण-बरतण
खड़कता
सीरख-पथरणां
झगड़ता,
अगाड़ी-पछाड़ी
सम्बन्ध तोड़ियोड़ा
अड़ौस-पड़ौस
मूंढ़ो फेरियोड़ा
गळी
मेण मुस्कली
चौक
चोफाळिया
अै है घर रा हाल
आ है जमाने री चाल!