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आज शहर सूना सूना सा / सर्वेश अस्थाना
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आज शहर सूना सूना सा बादल भी बिन पानी का है ।
भीड़ बहुत गलियों सड़कों पर किंतु अकेलापन फैला है,
भले धुला सा आसमान है पर लगता धुंधला धुंधला है।
महल खड़ा है दीप जलाये लेकिन ये बिन रानी का है।
आज शहर सूना सूना है बादल भी बिन पानी का है।।
उपवन की मुस्कान थमी है फूल खिले लेकिन उदास हैं,
किस्म किस्म की प्यास उगी हैं जाने क्यों ये सभी खास हैं।
भौंरा कैसे गुनगुन गाये स्वर भूला, बिन बानी का है।
आज शहर सूना सूना है, बादल भी बिन पानी का है।।
चारों तरफ देखता रांझा उसकी हीर कहीं मिल जाये,
जिसकी चाह लिए आया है वो तक़दीर कहीं मिल जाये।
दूर चांद है बस चकोर ही हिस्सा आज कहानी का है।
आज शहर सूना सूना है, बादल भी बिन पानी का है।।