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आज सफ़र से लौटे हैं हम / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
आज सफ़र से लौटे हैं हम कल फिर जाना है।
इसी सफ़र में जीवन अपना हमें बिताना है।
घुटनों-घुटनों चलकर कितने
बड़े हो गये हम।
अब तो अपने ही पैरों पर
खड़े हो गये हम।
इन पैरों पर इसी सफ़र को और बढ़ाना है।
आज सफ़र से लौटे हैं हम कल फिर जाना है।
कहते हैं कुछ लोग-सफ़र यह
काँटों वाला है।
कुछ कहते हैं-मज़ेदार है
बहुत निराला है।
जिसने जैसा काटा उसने वैसा माना है।
आज सफ़र से लौटे हैं हम कल फिर जाना है।
माना डगर न पूरी हमको
एक समान मिले।
कहीं मिले ऊँचाई हमको
कहीं ढलान मिले।
पर हम चलना सीख गये तो मंज़िल पाना है।
आज सफ़र से लौटे हैं हम कल फिर जाना है।